जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज जैसे संत इस धरती पर कई शताब्दियों में एक बार आते हैं। श्री कृपालु जी महाराज ने 1922 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में जन्म लिया और 16 वर्ष की आयु से ही भगवान् का धुआँधार प्रचार प्रारम्भ कर दिया। 91 वर्षों के अपने जीवन काल में उन्होनें भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वेदों-शास्त्रों के ज्ञान का भंडार खोल दिया। आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ उन्होनें लोगों की सामाजिक एवं शारीरिक उन्नति के लिए भी कई सराहनीय प्रयास किये, जिन्हें उनकी ज्येष्ठा सुपुत्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने बहुत लगन के साथ आगे बढ़ाया।
अपने गुरु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अप्रत्यक्ष हो जाने के बाद भी लाखों भक्त डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी के नेतृत्व में श्री महाराज द्वारा बताये गए भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं। उन लाखों लोगों को एक साथ ज़ोर का आघात लगा जब 24 नवंबर 2024 की सुबह, एक दुःखद सड़क दुर्घटना में सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी का अचानक निधन हो गया। उनकी इस असमय विदाई से उनके प्रिय जनों और परिषत् में शोक की लहर दौड़ गयी।
साधक-गण अपनी प्रिय “बड़ी दीदी” के लीला संवरण के बाद दुःख में डूब गए। पर साथ ही साथ वे उनके द्वारा दी गयी शिक्षाओं का स्मरण करते हुए कहते हैं कि गुरु और गुरुजन का कभी वियोग होना संभव नहीं है।
यह बहुत गर्व की बात है कि सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी ने ईश्वर भक्ति, गुरु सेवा और नारी सशक्तिकरण के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किये और असंख्य लोगों का कल्याण किया। यह संसार उन्हें सदा एक समाज सुधारक और अग्रणी गुरु भक्त के रूप में याद करेगा।
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